कोलकाता. बिजली गुल होने पर भी सुरंग में नहीं फंसेगी मेट्रो ट्रेन

Aug 15, 2023 - 13:32
Aug 25, 2023 - 01:35
कोलकाता. बिजली गुल होने पर भी सुरंग में नहीं फंसेगी मेट्रो ट्रेन

कोलकाता. अब बिजली गुल होने के बावजूद कोलकाता मेट्रो ट्रेन चलेगी। अब यात्रियों को यांत्रिक समस्याओं के कारण सुरंग में अंधेरे में इंतजार नहीं करना पड़ेगा।

दक्षिणेश्वर-कवि सुभाष मेट्रो में इस बार बैट्री एनर्जी स्टोरेज सिस्टम (बीईएसएस) लगाया जा रहा है। कोलकाता मेट्रो इस उन्नत तकनीक का उपयोग करने वाली देश की पहली मेट्रो है। इस सिस्टम से मेट्रो रेक को अगले स्टेशन तक ले जाया जा सकता है।

ग्रिड खराब हो जाने पर भी मेट्रो की आवाजाही में कोई दिक्कत नहीं होगी। यह व्यवस्था अगले एक साल के भीतर शुरू होगी। मेट्रो रेलेव के सीपीआरओ कौशिक मित्रा ने रविवार को यह जानकारी दी। मित्रा ने कहा कि यह प्रणाली इनवर्टर और उन्नत रसायन सेल बैटरी के संयोजन से बनी है।

अगर अचानक बिजली गुल हो जाए तो यह सिस्टम मेट्रो रेक को अगले स्टेशन तक ले जा सकता है। यानी अब मेट्रो को टनल में खड़ा नहीं रहना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि यह एक पर्यावरण अनुकूल प्रणाली है।

सालाना 25 लाख तक की बचत

इस सिस्टम से न सिर्फ यात्रियों की सुरक्षा बल्कि मेट्रो का बिजली खर्च भी बचेगा। पीक आवर्स में मेट्रो चलाने के लिए 32 मेगावाट बिजली की जरूरत होती है। बीईएसएस प्रणाली 4 मेगावाट की बिजली मांग को पूरा करेगी। परिणामस्वरूप, व्यस्त समय के दौरान मेट्रो चलाने के लिए अधिकारी कम बिजली खरीद सकेंगे। मेट्रो की लागत काफी कम हो जाएगी। मेट्रो ट्रैफिक के व्यस्त समय में इस सिस्टम से सालाना 25 लाख अन्य समय में 15 लाख तक की बचत की जा सकती है।

 इस सिस्टम का इस्तेमाल मेट्रो में आग लगने की स्थिति में किया जा सकता है। सुरंग में हवा की आवाजाही के लिए जरूरी बिजली की व्यवस्था इस तरह से की जा सकती है। कोलकाता में यांत्रिक समस्याओं के कारण मेट्रो के सुरंगों में फंसने की कई घटनाएं हुई हैं। इस नई व्यवस्था से जहां डर कम होगा वहीं यात्रियों की सुरक्षा भी मजबूत होगी।

यह तकनीक कोलकाता में 4 सबस्टेशनों - नोआपाड़ा, श्यामबाजार, सेंट्रल और जतिन दास पार्क में स्थापित की जाएगी। कोलकाता मेट्रो ने 4 मेगावाट के चार क्वाड्रेंट इनवर्टर को चालू करने के लिए 11 अगस्त को टेंडर जारी किया। उन इनवर्टर में ऊर्जा भंडारण सामग्री के रूप में लिथियम आयरन फॉस्फेट (एलएफपी) या लिथियम टाइटेनियम ऑक्साइड (एलटीओ) होगा।

 उन चारों मेट्रो स्टेशनों पर एक-एक मेगा वॉट का इनवर्टर लगाया जाएगा। मेट्रो रेक को 15-20 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से अगले स्टेशन तक ले जाया जा सकता है। इस तकनीक की मदद से यात्रियों को बीच सुरंग से सुरक्षित लाया जा सकता है।