National Epilepsy Day 2023: मिर्गी के दौरे को मोबाइल में रिकॉर्ड करें, इलाज में मिलती मदद
National Epilepsy Day 2023: प्रति एक हजार आबादी पर मिर्गी रोगियों की संख्या 2-10 तक होती है। इस बीमारी को लेकर बहुत भ्रांतियां हैं। मिर्गी का दौरा पड़ने पर लोग जूता सुंघाते, मुंह में कपड़ा ठूंसते, पानी पिलाते या झाड़-फूंक के चक्कर में पड़ते हैं। सही तथ्य यह है कि दौरा आने पर मरीज को करवट से लिटा दें। मुंह से झाग आ रहा है तो साफ करें। मिर्गी छूत की नहीं बल्कि मस्तिष्क की बीमारी है। यह लाइलाज नहीं है। नियमित 3-5 साल तक दवाइयां लेकर करीब 70% मरीज पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं। एक भ्रांति यह भी है कि मिर्गी रोगी माता-पिता नहीं बन सकता है। सही बात यह है कि न केवल माता-पिता बन सकते हैं बल्कि बच्चे की अच्छी परवरिश भी कर सकते हैं।
संभावित कारण
करीब 70% रोगियों में रोग का कारण पता नहीं चलता है। वहीं 30% में सिर में चोट, दिमाग में टी.बी., जन्म के समय बच्चे में सांस का न आना, जन्मजात विकृतियां, शराब, नशे की आदत, सुअर का मांस खाना, बिना धुली सब्जियां खाना आदि कारण हो सकते हैं। एक प्रकार का लारवा भी मस्तिष्क में पहुंच कर रोग पैदा कर सकता है। इन बातों का ध्यान रखकर, सफाई को बढ़ाकर भी इस रोग से बचाव किया जा सकता है।
मोबाइल फोन से मिर्गी के इलाज में मदद
मिर्गी रोग के निदान के लिए विभिन्न प्रकार के टेस्ट जैसे कि ई.ई.जी., वीडियो ई.ई.जी., सिटी स्कैन, एमआरआई आदि है। इसके इलाज में मोबाइल फोन भी एक अच्छी तकनीक है। इससे मरीज के दौरे का वीडिया बनाकर अपने चिकित्सक को दिखा देंगे तो मिर्गी रोग का निदान संभव है। आज कल स्टीरियो ई.ई.जी. भी आ गई है, जिससे कि मिर्गी के दौरे की सटीक जगह का पता लगाया जा सकता है। पहले की तुलना में मिर्गी का इलाज बेहतर हुआ है।
इलाज में कारगर है पेसमेकर
अब मिर्गी के दौरों के नियंत्रण के लिए पेसमेकर जैसे डिवाइस लगाए जा रहे हैं। ये ब्रेन तक जाने वाली नर्व से जुड़ा होता है जो मिर्गी के दौरे आने पर उसे इलोक्ट्रिक शॉक देकर इसको नियंत्रित करता है।
फोलिक एसिड लेना सही
मिर्गी से ग्रसित महिलाएं भी मां बन सकती है। गर्भाधारण के पहले महिलाओं की दवा में बदलाव किया जाता है। इससे भ्रूण पर असर नहीं होता है। महिलाओं को गर्भधारण के पहले से फोलिक एसिड लेते रहने से भ्रूण पर मिर्गी का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है।
जीन टेस्टिंग भी
मिर्गी में अब जीन टेस्टिंग (जिनेटिक टेस्टिंग) हो रही है। इसमें पता चलता है कि कौनसी दवा दी जानी चाहिए। इससे सटीक इलाज संभव है। डॉ. आर.के. सुरेका, सीनियर न्यूरोलॉजिस्ट एवं अध्यक्ष जयपुर चैप्टर, इण्डियन एपिलेप्सी एसोसिएशन